Ahmad Faraz Ki Famous Gazals – रोज़ की मुसाफ़त
रोज़ की मुसाफ़त* से चूर हो गये दरिया पत्थरों के सीनों पे थक के सो गये दरिया (मुसाफ़त = यात्रा) जाने कौन काटेगा फसल लालो-गोहर* …
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रोज़ की मुसाफ़त* से चूर हो गये दरिया पत्थरों के सीनों पे थक के सो गये दरिया (मुसाफ़त = यात्रा) जाने कौन काटेगा फसल लालो-गोहर* …
तू कि अन्जान है इस शहर के आदाब* समझ फूल रोए तो उसे ख़ंद-ए-शादाब* समझ (आदाब = ढंग ,शिष्टाचार, ख़ंद-ए-शादाब = प्रफुल्ल मुस्कान) कहीं आ …
जो चल सको तो कोई ऐसी चाल चल जाना मुझे गुमाँ भी ना हो और तुम बदल जाना ये शोलगी* हो बदन की तो क्या …
वो पैमान* भी टूटे जिनको हम समझे थे पाइंदा* वो शम्एं भी दाग हैं जिनको बरसों रक्खा ताबिंदा* दोनों वफ़ा करके नाख़ुश हैं दोनों किए …
जब तेरी याद के जुगनू चमके देर तक आँख में आँसू चमके सख़्त तारीक* है दिल की दुनिया ऐसे आलम* में अगर तू चमके हमने …
छोड़ पैमाने-वफ़ा* की बात शर्मिंदा न कर दूरियाँ ,मजबूरियाँ, रुस्वाइयाँ*, तन्हाइयाँ कोई क़ातिल ,कोई बिस्मिल,* सिसकियाँ, शहनाइयाँ देख ये हँसता हुआ मौसिम है मौज़ू-ए-नज़र* वक़्त …
क्या रुख्सत-ए-यार की घड़ी थी हंसती हुई रात रो पड़ी थी हम खुद ही हुए तबाह वरना दुनिया को हमारी क्या पड़ी थी ये ज़ख्म …
पयाम* आए हैं उस यार-ए-बेवफा के मुझे जिसे क़रार ना आया कहीं भुला के मुझे जूदाईयाँ हों तो ऐसी की उम्र भर ना मिले फरेब* …
मैं तो मकतल* में भी किस्मत का सिकंदर निकला कुर्रा-ए-फाल* मेरे नाम का अक्सर निकला था जिन्हें जौम*, वो दरया भी मुझी में डूबे मैं …
जख्म को फूल तो सर-सर को सबा* कहते है जाने क्या दौर है क्या लोग हैं क्या कहते हैं अब कयामत है कि जिनके लिए …