Hindi Ghazals By Ahmad Faraz – ख़्वाब मरते नहीं

ख़्वाब मरते नहीं
ख़्वाब दिल हैं न आँखें न साँसें के जो
रेज़ा-रेज़ा* हुए तो बिखर जायेंगे
जिस्म की मौत से ये भी मर जायेंगे

ख़्वाब मरते नहीं
ख़्वाब तो रौशनी हैं, नवा* हैं, हवा हैं
जो काले पहाड़ों से रुकते नहीं
ज़ुल्म के दोज़ख़ों* से भी फुँकते नहीं
रौशनी और नवा और हवा के अलम
मक़्तलों* में पहुँच कर भी झुकते नहीं

ख़्वाब तो हर्फ़* हैं
ख़्वाब तो नूर हैं
ख़्वाब सुकरात हैं
ख़्वाब मंसूर हैं

रेज़ा-रेज़ा = टुकड़े टुकड़े
नवा = गीत, आवाज़, शब्द
अलम = पताकाएँ
दोजख = नर्क
मक़्तल = वधस्थल
हर्फ़ = अक्षर, लिखावट