Hindi Ghazals By Ahmad Faraz – अगरचे ज़ोर हवाओं नें
अगरचे* ज़ोर हवाओं नें डाल रखा है
मगर चराग ने लौ को संभाल रखा है
भले दिनों का भरोसा ही क्या रहे न रहे
सो मैंने रिश्ता-ए-गम को बहाल रखा है
मोहब्बत में तो मिलना है या उजड़ जाना
मिज़ाज-ए-इश्क में कब येत्दाल* रखा है
हवा में नशा ही नशा फ़ज़ा में रंग ही रंग
यह किसने पैराहन* अपना उछाल रखा है
भरी बहार में इक शाख पे खिला है गुलाब
के जैसे तुने हथेली पे गाल रखा है
हम ऐसे सादादिलों* को, वो दोस्त हो की खुदा
सभी ने वादा-ए-फर्दा* पे टाल रखा है
“फ़राज़” इश्क की दुनिया तो खूबसूरत थी
ये किसने फितना-ए-हिज्र-ओ-विसाल* रखा है
अगरचे = हालांकि
येत्दाल = मॉडरेशन, संयम
पैराहन = वस्त्र
[सादादिलों = सीधा-साधा
वादा-ए-फर्दा = कल का वादा
फितना-ए-हिज्र-ओ-विसाल = मिलने और बिछड़ने का झगड़ा