Ahmad Faraz Ki Famous Gazals – रोज़ की मुसाफ़त
रोज़ की मुसाफ़त* से चूर हो गये दरिया
पत्थरों के सीनों पे थक के सो गये दरिया
(मुसाफ़त = यात्रा)
जाने कौन काटेगा फसल लालो-गोहर* की
रेतीली ज़मीनों में संग* बो गये दरिया
(लालो-गोहर = हीरे मोतियों की खेती, संग = पत्थर)
ऐ सुहाबे-ग़म*! कब तक ये गुरेज़* आँखों से
इंतिज़ारे-तूफ़ाँ* में ख़ुश्क* हो गये दरिया
(सुहाबे-ग़म = दुख के मित्रो, गुरेज़ = उपेक्षा, इंतिज़ारे-तूफ़ाँ = तूफ़ान की प्रतीक्षा में, ख़ुश्क = सूख गये)
चाँदनी से आती है किसको ढूँढने ख़ुश्बू
साहिलों के फूलों को कब से रो गये दरिया
(साहिलों = तटों)
बुझ गई हैं कंदीलें* ख़्वाब हो गये चेहरे
आँख के जज़ीरों* को फिर डुबो गये दरिया
(कंदीलें = दीपिकाएँ, जज़ीरों = टापुओं)
दिल चटान की सूरत सैले-ग़म* पे हँसता है
जब न बन पड़ा कुछ भी दाग़ धो गये दरिया
(सैले-ग़म = दुखों की बाढ़)
ज़ख़्मे-नामुरादी* से हम फ़राज़ ज़िन्दा हैं
देखना समुंदर में ग़र्क़* हो गये दरिया
(ज़ख़्मे-नामुरादी = असफलता के घाव, ग़र्क़ = डूब गये)