हिंदी शायरी ४ लाइन में – गगन फ़िर गुनगुनाता है

गगन फ़िर गुनगुनाता है, धरा फ़िर कसमसाई है
अज़ब उन्माद-सा लेकर तुम्हारी याद आई है
तुम्हारी मदभरी अंगड़ाईयों का ध्यान आने पर
हवा चन्दन -वनों में भटक कर फ़िर लौट आई है ।